अगर विशुद्ध रूप से भाषा की कोमलता देखनी हो तो डॉ भावना कुँअर का यह हाइकु-poem > वो मृग छौना बहुत ही सलोना कुलाचें भरे ।
2.
ममतामयी माँ का वात्सल्यमयी हृदय मृग छौने की मूक आंखों की भाषा कैसे न समझ पाता… बिन माँ का मृग छौना जैसे मानव शिशु ही बन गया हो बिश्नोई माँ के लिए...अपने बच्चोँ और उस हिरनी के बच्चे में उसे कोई अन्तर ही न दिखता..